सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Saturday, August 21, 2010

महा मृत्युंजय मन्त्र

महा मृत्युंजय मन्त्र

ओम् त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।। य ३/६०- यजुर्वेद

(MAHA MRITUNJAY MANTRA)
O Lord ! We worship mother veda which is fulfilling our lives in three ways- physically, mentally and spiritually. We are in a cycle of life and death, hence death is inevitable. We are aware that we have to die one day , but, we pray to you God that let us be separated from this life like a ripe fruit of Kharbooja (Musk-melon) , which gets detached from its roots silently without any resistance , spreading the sweet smell announcing its ripening. Let us become immortal with our deeds.


जन्म तुमने है दिया हम मानते
मौत भी आनी है यह हम जानते


पर जीऊँ मैं जिंदगी ऐसी पिता
मौत भी आये मगर ऐसी पिता
शान से जीऊँ मरूं मैं शान से
जिंदगी और मौत ऐसी मांगते


जिंदगी पूरी जीऊँ मैं इस तरह
जैसे खरबूजा हो खुशबू से भरा
जैसे पक कर डाल  से होता जुदा
इस तरह जीवन से मुक्ति चाहते


मृत्यु से मुक्ति न कोई पा सका
कर्म से ही मृत्युंजय कहला सका
जिदगी जब तक चले ऐसी चले
मृत्यु जो कर दे अमर वह चाहते

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