सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Wednesday, October 27, 2010

विद्या रुपी खजाना

ओम् न ता नशन्ति न दधाति तस्करो 
नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति I
देवान्शच वबृयजते ददाति च
ज्योतिगत्ताभि: सचते गोपतिः सहः II
                                         - अ ४/२१/३
The wealth of Vidya - the Knowledge unlike other material wealth of the worls, can not be destroyed , can not be stolen or robbed, can not be looted by our worst enemies . The rich with such a wealth is always in the graceful company of scholars. He keeps on distributing his knowledge, yet this welath never gets depleted.
 
दुनिया की सारी दौलत तो बस आनी जानी है 
कल सम्पति का मालिक था , अब वो एक कहानी है
 
धन चंचल है चलता है , इसका उसको मिलता है
रथ के पहियों सा इसका हरदम चक्का चलता है
जीवन के सारे वैभव यूँ ही एक रवानी है
 
विद्या है सही खजाना हरदम साथ निभाना है
जिसे चोर नहीं ले सकते , लूट सके न जमाना है
विद्या बुद्धि का गहना यह वेदों की वाणी है
 
जितना बांटों बढती है , जितना बरतो चढ़ती है
ये दौलत विद्वानों की , देने से नहीं घटती है
विद्या से आगे बढ़ता दुनिया का हर प्राणी है  
 

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