सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Saturday, October 30, 2010

संगठन सूक्त

ओम् समानः मन्त्रः समितिः समानी, समानं मनः , सः चित्तम् एषाम I 
समानं मन्त्रम् अभिमन्त्रये वः , समानेन वः हविषा जुहोमि  II 
ओम् समानी वः आकूतिः , समान हृदयानि वः I 
समानं अस्तु वः मनः , यथा वः सु सः असति II 
                                                                                      -ऋ /१०/१९१/३-४  

Let your thoughts and decisons be based on thinking of all your colleagues so that such decisons are followed by one and all .

There should be no reservations.Differences whatsoever there be, should be extinguished by offering to the Agni ofYajya like oblation. Unity should prevail.

Let your intensions be common. Let your hearts' desires be similar. The spirit of togetherness must prevail in your lives.

संगठन ही व्यक्ति हो , संगठन ही भक्ति हो
संगठित हर काम में , एक अद्भुत शक्ति हो

जब इरादे नेक हों , द्धेय सबके एक हो
मंत्रणा से मन मिले , मन में यह आसक्ति हो

मन में न हो भिन्नता , न किसी से खिन्नता 
प्रेम मन में हो भरा , प्रेम की अभिव्यक्ति हो  

No comments:

Post a Comment