सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Monday, December 5, 2011

सृष्टि - आरम्भ


औम् न मृत्युः आसीत् अमृतं न तर्हि , न रात्र्याः अन्हः आसीत् प्रकेतः !
आनोत् अवातं स्वधया तत् एकम् , तस्मात ह अन्यत् न परः किन्चन आस !!
ऋग्वेद १०/१२९/२   

There was neither death nor immortality then ; there was no sign of night nor of day . That one breathed without extraneous breath with his own nature . Other than him there was nothing beyond. There was no concept of time as there was no day or night. He and he alone was present then.

कौन था ! कौन था ! कौन था !
कौन था किसने रचाया ये जगत 
कौन था किसने बनाया सृष्टि को 

न जनम था , न मरण था 
जीव के बिन क्या चरण था 
कौन था किसने बनायी योनियाँ 

न दिवस था रात थी ना
समय नामक बात थी ना 
कौन था किसने चलाया चक्र ये 

आज था ना , ना कोई कल 
ना भविष्य और वर्तमान 
कौन था किसने बनाये काल सब 




Friday, November 25, 2011

मोक्ष - प्रार्थना


औम् नमः शम्भवाय च मयोभवाय च 
नमः शङ्कराय च  नमः शिवाय च शिवतराय च !! 
-यजु : १६/४१ 

We offer our devotion to him who is ultimate happiness, provider of happiness , who helps us in doing good deeds, who is auspicious and who can provide us the bliss of Moksha - the liberation from the cycle of life and death .

हे देव पिता दाता दानी 
कर लो स्वीकार यह नमस्कार 
सुन लो अब यह व्याकुल वाणी 

तुममे सुख है , तुम ही सुख हो 
तुमसे सुख है तुम चिर सुख हो 
हमको कुछ छींटे मिल जाए 
तेरी किरपा ही है फुहार 

मैं जग माया में फंसा हुआ 
स्वारथ के दल में धंसा हुआ 
इस दलदल से मुझको निकाल
भेजो मुझको अब मोक्ष द्वार  

Thursday, November 24, 2011

सरस्वती उपासना


औम् पावक नः सरस्वती याजेभिर्वाजिनीवती यज्ञं वष्टु धिया वसुः !!
औम् चोदयितृ सूनृतानाम्  चेतयति सुनतीनाम ! यज्ञं दधे सरस्वती !!
औम् अहो अर्णः सरस्वती प्रचेतयति केतुना ! धियो विश्वास विराजति !! 
- यजु : २०/८४ 

Saraswati , the goddess of knowledge, the purifier, Great in her power of knowledge , with intellect as her treasure may grace our knowledge !
Inspirer of truthful and sweet speech, instigator of excellent thoughts, may Saraswati uphold our dedicated life of sacrifice!
Sarswati is like a great ocean of knowledge. Whatever we know is an iota of the immeasurable knowledge existing in the world. Our knowledge is worthy only due to being a part of universal knowledge !

हे सरस्वती ज्ञान की देवी 
बुद्धि की विज्ञान की देवी
दान विद्या का हमें दे दो 
तू है विद्या दान की देवी 

प्रेरणा दो, बुद्धि दो हमको 
चेतना में वृद्धि दो हमको 
विद्वता सन्मान की देवी 
हे सरस्वती ज्ञान की देवी

बूँद जितना ज्ञान है मेरा 
जलधि सा भण्डार है तेरा 
ज्ञान गुण की खान की देवी  
हे सरस्वती ज्ञान की देवी

Tuesday, November 8, 2011

भय रहित जीवन


औम अभयं नः करति अन्तरिक्षं  अभयं ध्यावापृथिवी उभे इमे   !
अभयं पश्चात् अभयं पुरस्तात् , उत्तरात्, अधरात्, अभयं नः अस्तु !!
औम अभयं मित्रात् ,अभयं अमित्रात्, अभयं ज्ञातात्, अभयं परोक्षात !
अभयं नक्त्मभयं दिव नःसर्वाः आशाः मम मित्रं भवन्तु !!
 अथर्व  १९/१५/५

May we be fearless ! Fearless from the heaven ! Fearless of the earth ! May we not have fear from what is in our front or behind ; from top or below ! Fearless from friends ! Fearless from enemies ! Fearless of known ! Fearless of unknown ! Fearless at day ! Fearless at night ! Hey God, we may conquer the fear in all possbile forms.   

भय रहित जीवन रहे यह कामना है
हर समय प्रभु हाथ तेरा थामना है

ना डरे हम तो किसी भूचाल से
ना डरे आकाश  से पाताल  से
डर हमें ना हो दिशाओं से कभी
डर ना हो हमको ग्रहों की चाल से

भय से हों निर्भय यही बस कामना है
हर समय प्रभु हाथ तेरा थामना है

डर ना हो हमको किसी भी बात का
ज्ञात का या फिर किसी अज्ञात का
मित्र से डर हो ना हमको शत्रु से
दिवस का डर हो ना काली रात का

भय के ऊपर हो विजय यह चाहना है
हर समय प्रभु हाथ तेरा थामना है  

Sunday, November 6, 2011

श्रृष्टि का आरम्भ


औम ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः I 
स बुधन्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतस्च विवाह II 
सामवेद - ४/१/३/९  
 
In the begining, God created the universe. After setting its limits  God created the brilliant light. Then he created all those things which are present at this time and which are not even in existance today. He created men, women and various other species .
 
श्रृष्टि का आरम्भ है तुमने किया
ज्ञान का प्रारंभ भी तुमने किया
तुम हो रचनाकार इस ब्रह्माण्ड के
सूर्य का प्रकाश फिर तुमने किया
 
तुमने ही कितने बनाये जीव फिर
मनुज, पशु, पक्षी बनाये कीट फिर
जन्म और मृत्यु का ये फिर सिलसिला
कर्म के आधार पर तुमने किया 

Wednesday, September 21, 2011

सर्वव्यापक ईश्वर

औम् यः तिष्ठति चरित, यः च वञ्चति, यः निलयं चरति , यः प्रतकं  I 
द्वौ संनिषध्य यत् मन्त्रयेते ,राजा तद् वेद वरुणः तृतीयः II 
अथर्व ४/१६/२
You are being watched when you move, when you stand or even when you ar up to some mischief .When two persons are in a private discussion or to conspire against someone , there is a third who is present there. They do not realise that the third invisible is God who is aware of everything .
संसार चलता जा रहा , सागर मचलता जा रहा
हैं कौन ये सब कर रहा , कोई तो है, कोई तो है I
वह चल रहा , वह फिर रहा, फिर भी है वो स्थिर रहा
वह हर कहीं छाया हुआ, कोई तो है , कोई तो है I
हम कर रहे कुछ गुप्त है , वह देखता पर लुप्त है
कुछ भी नहीं जिससे छुपा , कोई तो है कोई तो है

Monday, June 20, 2011

मधुर वचन

औम जिव्हया अग्रे मधुमे , जिव्हामूले मधुलकं I 
मम इत् अहः ऋतो असः , मम चित्तं उपयासि II 
औम मधुमत् मे निष्क्रमणं मधुमत मे परायणं i 
वाचा वदामि मधुमद भूयासं मधुसन्द्रष्यः II  
अथर्व: १/३४/२ व १/३/३
 
There be honey at the tip of my tongue, abundance of honey at the root of my tongue , honey in my behaviour and my dealings ; come and stay - O Honey , in my heart .
My leaving the home with sweetness, my coming home should be sweet too, and I become as sweet as honey itself in my behaviour .
 
मीठा बोलूँ , मीठा बोलूँ , जब भी बोलूँ , मीठा बोलूँ
 
जिव्हा पे हो मेरे मधुकण . मीठा बोले वाणी हर क्षण 
मीठा हो हर काम मेरा,  प्रभु , मन में मिश्री घोलूँ 
 
घर से निकलूँ मीठा कहते , घर फिर लौटूं मीठा कहते
इतना मीठा जीवन हो कि , मैं मधु जैसा हो 

Sunday, June 19, 2011

कर्म प्रेरणा

कुर्वन् एव इह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः I 
एवं त्वयि न अन्यथा अस्ति , न कर्म लिप्यते नरे II 
(यजु. ४०/२)
 
o man ! You wish to live for a hundred years by doing work ; but without attachment. Thus alone , and not otherwise, do your deeds. There is no other better way to live this life .
 
कर्म करता कर चल सदा , सोच मत तू फल सदा
सौ बरस के यज्ञ में , बन के हविषा जल सदा
 
कर्म के बिन कुछ नहीं , कर्म बिन तू कुछ नहीं
कर्म के बिन रास्ता , बन गया दलदल सदा     

Thursday, June 2, 2011

ईश्वर का स्वरुप

औम सः परि  अगात् , शुक्रम , अकायम , अव्रणम् , अस्नाविरं , शुद्धम् , अपापविद्धं , कविः , मनीषी , परिभूः, स्वयम्भू : याथा तथ्यतः अर्थान् , व्यदधात , शाश्वतिभ्यः संबह्य I    
-ऋग्वेद
 
He is omnipresent . He is purest . He is bodiless - hence he can have no wounds .He has no muscles and no nerves . He is beyond virtues or vices . He is not created by anyone nor for any specific purpose . He knows all . He witnesses everything . He created the earth and the universe the way we see it .
 
हर जगह छाया हुआ वह, पर हमें दिखता नहीं 
पहुँचता वह हर समय है , पर हमें मिलता नहीं
 
शुद्ध है निर्मल है वह, ना कोई तन-देह है
कोई नस नाड़ी नहीं , फिर भी ना संदेह है
आता जाता हर जगह है, फिर भी वह चलता नहीं
 
ना कोई कर्ता है उसका , ना कोई कारण कहीं 
श्रृष्टि का निर्माण करता, करता वह धारण जमीं 
भूमि हिल जाती है कतिपय , वह मगर हिलता नहीं  

Thursday, May 19, 2011

श्रद्धा

औम श्रध्यया अग्निः सभिध्यते , श्रध्यया हूयते हविः I 
श्रद्धा भगस्य मूर्धनि वचसा वेदयामसि II 
(ऋग. १०/१५१/१)
  
Agni , the fire is enkindled by Shraddha - the faith . Agni is the inner commitment , the entusiasm to do something that burns like fire in the heart of a man of faith , prompting him to dedicate his life for a noble cause . Faith is oblation of personal sacrifice offered in the Great yajna , one makes for one's religion or country or ideal . Faith is at the head of success or achievement in life. Even the hardest situations are handled with faith within and God over head .
 
कोई लाग लगी हो मन में वह श्रद्धा है 
कोई आग लगी हो मन में वह श्रद्धा है
 
जब काम कोई अपना लेता मानव मन
उसको करने में झोंक डालता तन मन
वह उसका दीवानापन ही श्रद्धा है
 
श्रद्धा से ही तो भाग्य बदल जाता है
श्रद्धा से ही इतिहास लिखा जाता है
मन का गहरा विश्वास ही तो श्रद्धा है
 
कुछ पाने को कुछ कर जाने की इच्छा
पाने की खातिर मर जाने की इच्छा
ऐसी मन की इच्छा ही तो श्रद्धा है

Wednesday, May 18, 2011

अन्न स्तुति

औम् अन्न्पतेअन्न्स्यनो देहयान मीवस्य शुष्मिणः I 
प्र प्र दातारं तारिष ऊर्ज नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे II 
 
O God ! The provider of grains ! You bless us with such grains , which may keep us free from diseases and make us healthier and stronger . We pray the same for our animals too .
 
तेरी कृपा से जन्म यह 
तेरी कृपा का अन्ना यह 
हमको मिले यूँ ही सदा 
जीवन चले यूँ ही सदा
 
इस अन्न में वो शक्ति है 
इस शक्ति में वो भक्ति है
जो रोग करके दूर सब 
देती है सारे सुख सदा
 
तेरी कृपा की छाँव में 
तेरे निराले गाँव में
इंसान तो इंसान हैं 
पशु को भी मिलता बल सदा    

Friday, April 15, 2011

ईश्वर के विभिन्न रूप

औम प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना
प्रातर्भगं पूष्णं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः साममुतरुद्रं  हुवेम !!  
- यजु ३४/१४
 
We meditate God in the morning in the form of Fire- the Agni ;in the form of Power - the Indra ; in the form of Friend and Companion - the Mitravaruna ; in the form of Good Health - the Ashvino; in te form of Growth - the Bhaga ; in the form of Great Protector - the Posha ; in the form of Great Knowledge - the Brahmanaspati ; in the form of Peace- the Soma and in the form of Glorious Fighter- the Rudra.
 
फिर आई एक नयी सुबह , फिर मन में नव उल्लास हुआ
आँखों ने देखा तेज रूप , जब चमकीला आकाश हुआ
 
सुन्दरता पृथ्वी पर बिखरी , ऐश्वर्य रूप ईश्वर का यह 
हम सबको मिलता है सामान , न्यायी ईश्वर आभास  हुआ
 
रोगों का वह करता विनाश , दुष्टों का करता सर्वनाश 
वह भाग्यविधाता पोषक है , हर वक़्त हमारे पास हुआ
 
वह ज्ञानरूप वह ज्ञाता  है, वह शांति रूप . वह त्राता है
वह रौद्र-रूप, वह सोम-रूप , कण कण क्षण क्षण में वास हुआ     

Wednesday, February 16, 2011

सम समाज

ओम् अज्येष्ठास: अकनिष्ठासः ऐते सं भ्रातरः वावृधुः सौभगाय I 
युवा पिता स्वप रुद्रः एषाम् सुदुघा प्रश्नि: सुदिना मरुद्भ्यः II 
                                                                                        ऋग - ५.६०.५

None is big, none small ,all are equal as brothers and all together move on for prosperity. The youth of the society is like its leader. He is self dependent. He is powerful. He will bring the good fortunes for the society with his enterpreneurship and efforts .

एक है सब कौन छोटा या बड़ा है
ईश ने सबको बराबर ही गढ़ा है

हैं सभी भाई , सहोदर हो न हो सब
सामूहिक समृद्धि का ताना जुड़ा है

जो युवा है , मेहनती है , करमचित है
अपनी कर्मठता से वो आगे बढ़ा है  

वृष्टि प्रार्थना

Listen to this Mantra, English Text and Musical Hindi Bhajan


औम क इमं नाहुषीष्वा इन्द्रं सोमस्य तर्पयात I
स नो वसून्या भरत II
                                                          साम: २.२.५.६
Oh God ! Kindly fill these clouds with sweet and useful water. The humanity on the earth needs it . Let these clouds bring us rains to help us grow plentiful of grains !  
मेघ दो प्रभु वृष्टि दो ! सरस अमृत वृष्टि दो !
मधुर रस से तृप्त हो , शुष्कता से रिक्त हो
बादलों के दरस से , तृप्त हो वह दृष्टि दो !
धरा का श्रृंगार कर, जीव का उद्धार कर
यूँ हरित महकी रहे , ऐसी मोहक श्रृष्टि दो !

Saturday, February 5, 2011

अग्नि देव का आह्वान

ओम अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् I
युयोधस्म्ज्जुहराण मेनो भुइष्ठान  ते नमः उक्तिं विधेम II

( यजुर्वेद ५/३६ ; ४०/१६ ; ७/४३ )


O Agni (fire) ! The effulgent power of the universe ! Lead us all by the path of correctness . O Deva ! You and only you know what is right and good . Help us in fighting out the wicked , evil and sinful deeds out of ourselves . We utter these words with our utmost humbleness , again and again .


हो ज्ञान के भण्डार तुम , हो दिव्य पालनहार तुम
तुम कर्म सबके जानते , धन धान्य के आगार तुम

हम तुच्छ प्राणी विश्व के,  हैं हाथ फैलाये खड़े
कर दो सुखी संसार तुम , ऐश्वर्य के भण्डार तुम
तुम कर्म सबके जानते , धन धान्य के आगार तुम

दुर्बुद्धि को हर लीजिये , दुखों से मुक्ति दीजिये
करते हो बेडा पार तुम , हो विश्व के करतार तुम
तुम कर्म सबके जानते , धन धान्य के आगार तुम

Saturday, January 29, 2011

पृथ्वी स्तुति

ओम् विश्वम्भरा वसुधानि प्रतिष्ठा हिरन्यवक्षा जगतः निवेशनी I
वैश्वानरं विभ्रती भूमिः अग्निं इन्द्र ऋषभाः द्रविणे नः दधातु II

Fulfilling the needs of everyone , holding within herself all kinds of wealth , mobile yet firm and stable , containing gold within her like a deep breath in chest , sheltering all that moves and has its being , bearing fire within , which is useful for the whole of mankind , let such benevolent Earth whose lord is Indra make us wealthy with her blessings .

हे वसुंधरा ! माँ वसुंधरा !
कितना तुमने है धीर धरा !

धारण करती इस सृष्टि   को
सब पर करती धन वृष्टि को
चलती रहती पर ना हिलती
तू है कितनी गंभीर धरा !

तेरे अन्दर सोना चाँदी
जैसे सांसे भरती छाती
सारे प्राणी , कहते वाणी 
सुख दे माता , दे प्यार तेरा !   

(अथर्व १२/१/६ )

Thursday, January 6, 2011

जीवेम शरदः शतं I

ओम् तत् चक्षुः देव हितं पुरस्तात शुकं उच्चरत  I 
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं I 
श्र्णुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं I 
अदीनः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् II
- यजु. ३६/२४

He is the seer of all , benefactor of the righteous . ever present , illuminating eye of the world has arisen in pure form before us. With his kind grace , we may see for a hundred years, may we live for a hundred years , may we hear for a hundred years , may we speak for a hundred years , may we live without suffering and humiliation for a hundred years and beyond that .

ब्रह्माण्ड तेरा रूप है , यह विश्व तेरा क्षेत्र है
इस विश्व को है देखता , सूरज तुम्हारा नेत्र है

हम भी इसे देखें प्रभु, सौ वर्ष तक देखें प्रभु
आँखों में तेरा तेज है , हर दृश्य तेरा चित्र है

सौ वर्ष तक इन कानों से हम , तेरे सुने गुण गान हम
तू ही हमारा इष्ट है , तू ही हमारा मित्र है

शत वर्ष तेरी भक्ति हो , रोगों से हरदम मुक्ति हो
तेरी शरण में है पिता , तू ही दयालु पितृ है
                               .