औम् न मृत्युः आसीत् अमृतं न तर्हि , न रात्र्याः अन्हः आसीत् प्रकेतः !
आनोत् अवातं स्वधया तत् एकम् , तस्मात ह अन्यत् न परः किन्चन आस !!
ऋग्वेद १०/१२९/२
There was neither death nor immortality then ; there was no sign of night nor of day . That one breathed without extraneous breath with his own nature . Other than him there was nothing beyond. There was no concept of time as there was no day or night. He and he alone was present then.
कौन था ! कौन था ! कौन था !
कौन था किसने रचाया ये जगत
कौन था किसने बनाया सृष्टि को
न जनम था , न मरण था
जीव के बिन क्या चरण था
कौन था किसने बनायी योनियाँ
न दिवस था रात थी ना
समय नामक बात थी ना
कौन था किसने चलाया चक्र ये
आज था ना , ना कोई कल
ना भविष्य और वर्तमान
कौन था किसने बनाये काल सब