सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Friday, June 14, 2013

ईशावास्योपनिषद मन्त्र -2



कुर्वन् एव इह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः I 
एवं त्वयि  अन्यथा अस्ति , न कर्म लिप्यते नरे II 
(यजु. ४०/२)

O man ! You wish to live for a hundred years by doing work ; but without attachment. Thus alone , and not otherwise, do your deeds. There is no other better way to live this life .

कर्म करता कर चल सदा , सोच मत तू फल सदा
सौ बरस के यज्ञ में , बन के हविषा जल सदा

कर्म के बिन कुछ नहीं , कर्म बिन तू कुछ नहीं
कर्म के बिन रास्ता , बन गया दलदल सदा     

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