सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Monday, June 17, 2013

ईशावास्योपनिषद मन्त्र -5



तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तदु अन्तिके
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः  II 5 II 


He, the Supreme Lord, moves all without moving himself; is extremely far yet extremely near; he is inside all yet outside everyone.


                 
वह चल रहा , वो चलायमान 
वो थमा हुआ है विद्यमान 
जो चला रहा ब्रह्माण्ड को 
जो जानता हर कांड को 

जो है दूर यूँ दिखता  नहीं 
वो है पास पर मिलता नहीं 
वो घुला हुआ है जगत से  
पर भी  अलग है जगत से  

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