सुधी पाठकों ! वेद-सार में संस्कृत में लिखे मंत्र वेदों और वेदों पर आधारित पुस्तकों से लिए गए हैं .फिर भी ट्रांस लिट्रेसन के कारण छोटी मोटी त्रुटि संभव है . वेद मन्त्रों के अर्थ संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों द्वारा किये गए अर्थ का ही अंग्रेजीकरण है . हिंदी की कविता मेरा अपना भाव है जो शब्दशः अनुवाद न होकर काव्यात्मक रूप से किया गया भावानुवाद है . इस लिए पाठक इस ब्लॉग को ज्ञान वर्धन का साधन मानकर ही आस्वादन करें . हार्दिक स्वागत और धन्यवाद .



Tuesday, June 18, 2013

ईशावास्योपनिषद मन्त्र -6



यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्ने वानुपश्यति
सर्व भूतेषु चात्मानं ततो न विचिकित्सति  II 6 II 


One who perceives all living beings in Him, the Supreme Lord, and the Supreme Lord pervading in all living beings- will never drift away from the reality of the world hence will never do any sinful act and will not nurture any hatred for anyone.


              
सब मुझ में हैं 
मैं सब में हूँ 
सब उसमें हैं 
मैं उसमें हूँ 

फिर मैं क्या हूँ 
फिर सब क्या हैं 
हम हैं क्या कुछ 
बस वो सब कुछ 

वो मेरा है 
मैं उसका हूँ
सब उसका है 
वो सबका है 

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