हिरण्मयेन पात्रेण
सत्यस्यापिहितं मुखम I
यो सावादित्ये
पुरुषः सोसावाहम् I औम खं ब्रह्म II 17 II
तू है व्याप्त
सदा इस जग में
सूर्य चन्द्र
ग्रह तारों में
तेरा रूप सदा
दिखता है
फूलों और बहारों
में
यह मेरा ही
अंधापन है
मुझको नहीं
दिखाई दे
जग की झूठी चमक
दमक में
तेज तेरा न
दिखाई दे
प्रभु ! मेरे ये
चक्षु खोल दो
तुझको जान सकूं, भगवन
मैं क्या हूँ , मुझमें क्या है
इतना पहचान सकूँ
,
भगवन